मेरी पहचान- कोन हूँ में?

 कोन हू में?

मेरे पापा की बेटी?

मेरे पति की बीवी?

मेरे बच्चे की माँ?

कोन हूँ में?

यह सवाल तब भी था जब में चार साल की बच्ची थी और यह सवाल अब भी है जब में चालिस साल की महीला हूँ।

क्या मेरी पहचान सिर्फ़ इन रिश्तों से है?

मेरा कोई और पहचान नही?

आज सोचतीं हूँ में, किया सिर्फ़ आपने परिवार की ज़रूतो को पूरा करने के लिए जनम हुआ था मेरा?

आगर यह ही सच है मेरा तो आज यह ख़ालीपन क्यूँ है? क्यूँ आज इस सवाल का जवाब search कर रही ही में?

कोन हूँ में?

मेंने ऊँच कोटि की study की, विवाह से पहले पापा की पहचान और विवाह के बाद पति की पहचान से जानी गयी।

हाँ काम किया में घर को financial सपोर्ट भी किया, पर उससे भी मेरी पहचान ना बदली, अभी भी में मेरे पति की बीवी के नाम से ही जन्नी जाती हऊ।

क्यूँ में तारीफ़ और पहचान के काबिल नही?

क्यूँ में सबकुछ करते हुए भी आपने नाम और पहचान के काबिल नही?

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