प्यार की परिभाषा क्या है

प्यार की परिभाषा जीवन के हर मोड़ पे बदलती है।
प्यार कभी एक से नहीं होता, ना ही हर एक से एक सा होता है ।
पहला प्यार doop में उस शाव की तरहा है, जो जब भी याद आता है तो एक हल्की मुस्कान देजाता है । यह प्यार माँ के आचल से मिलता है ।
एक प्यार आदर, संघर्ष और जिद्दी का मिश्रण होता है, जो आपको जीवन में कभी हारने नहीं देता, यह प्यार पिता से होता है ।
एक प्यार सामने, समझोते और सम्र्पण का होता है । यह प्रेमिका या पत्नी से होता है ।

अपनी जीवनसाथी के साथ नवीन जीवन का सर्जन भी तो प्यार है ।
उस नए जीव को अपना आग समझना, पर वक़त आने पर उसे अपने नरने कूद से लेने की आजादी देना भी तो प्यार है ।

आपने इस्ट देव से जिद्द और नाराज़ होना भी तो प्यार है ।
आपने आप से पहले किसी और के बारे में सूचना भी तो प्यार है ।

प्यार का नाम लेला भी है जिसके लिए मजनू ने जग से मू मोड़ा था,
और प्यार वो भी है जब मीरा ने सांसारिक बंदनों से मोह छोड़ा था।

किसका प्यार सच और कोन सा प्यार महान है?
प्यार तो बस प्यार है, देव से हो या इंसान से ।

यह प्यार किसी से भी हो सकता है ।
यह प्यार हर समाए बदलता है ।
प्यार कभी एक से नहीं होता, ना ही हर एक से एक सा होता है ।



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