Janet-e-zameen-Kashmir

आज दिल फिर दुखा है,
आज फिर सर दुआ में जुखा है।

मीटी मेरी लहू लोहान है,
यह ज़मीन लाल है, ये निकली इसमें से गुहार है..

ए जनत-ए-ज़मीन-मेरे कश्मीर 

आज फिर तेरी ज़मीन पर गिरे हमारे देश के लाल है।

क्यू तेरी ख़ूबसूरत की तारीफ अब लब में आती नहीं, इस बर्फीली वादियों में सफ़ेद रंग शांति का नहीं, लाल रंग जंग का है।
क्यों बार बार तेरी ज़मीन पर समर शंक की दून सुनी देती है?
उस दून के बाद एक रुदन है, गुहार और दुआ ही बस सुनी देती है..

यह जनत-ए-ज़मीन तो नहीं था मेरा, यह कैसी जनत है, जो सफ़ेद नहीं लाल है।
हर तरफ़ बस रुदन है और गुहार है।

Apki ladli sherni 

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